Tuesday, November 21, 2017

पहचान भूल गए है .........


उलझी हुईं पतंग तारोंसे छुड़ाना जानते है
मतलब ये नहीं के पतंग उडाना जानते है

उलझनो को सुलझाते , फिजा का लुफ्त भूल गए है
भागते हुए पतंगोंके पिछे, हम यूँही उड़ना भूल गए है

समेटे हुए पतंगोंसे , रंगीन ख्वाबोंको देखना भूल गए है
फिरभी कहते फिरते है सबसे हवा का रुख जान गए है

कभी सोचा है जिंदगी बस, कुछ पतंग , डोर और हवा ही तो  है
जिसे हम आज कल  पहचानना भूल गए है .........


एक थेंब तुझ्यासाठी
२१ नवंबर २०१३ 

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