उलझी हुईं पतंग तारोंसे छुड़ाना जानते है
मतलब ये नहीं के पतंग उडाना जानते है
उलझनो को सुलझाते , फिजा का लुफ्त भूल गए है
भागते हुए पतंगोंके पिछे, हम यूँही उड़ना भूल गए है
समेटे हुए पतंगोंसे , रंगीन ख्वाबोंको देखना भूल गए है
फिरभी कहते फिरते है सबसे हवा का रुख जान गए है
कभी सोचा है जिंदगी बस, कुछ पतंग , डोर और हवा ही तो है
जिसे हम आज कल पहचानना भूल गए है .........
एक थेंब तुझ्यासाठी
२१ नवंबर २०१३
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