कहाँ से आई है ये बेरुखी ? मुझमे मुझको पता नहीं
वरना जिंदगी तो कुछ सिक्के, कुछ पल , कुछ बातों में
यूँही गुजर जाती थी.....
ये हवा, ये मौसम ,ये नज़ारे कुछ अलग अंदाज बयां करते है
कुछ छींटे बौछारोंकी , कुछ बुँदे सावन की ,
कभी मासूम हुवा करती थी।
दुखों को पीछे छोड़ने की जद्दो जिहाद में
खुशियोंकी तलाश में.ज़िन्दगि मौताज हो गई
नजाने कहांसे आई ये बेरुखी ? मुझमे मुझको पता नहीं
वरना जिंदगी तो कुछ सिक्के, कुछ पल , कुछ बातों में
यूँही गुजर जाती थी.....
ये हवा, ये मौसम ,ये नज़ारे कुछ अलग अंदाज बयां करते है
कुछ छींटे बौछारोंकी , कुछ बुँदे सावन की ,
कभी मासूम हुवा करती थी।
दुखों को पीछे छोड़ने की जद्दो जिहाद में
खुशियोंकी तलाश में.ज़िन्दगि मौताज हो गई
नजाने कहांसे आई ये बेरुखी ? मुझमे मुझको पता नहीं