Saturday, February 28, 2015

कहाँ से आई है ये बेरुखी ?

कहाँ से आई है ये बेरुखी ? मुझमे मुझको पता नहीं
वरना जिंदगी तो कुछ सिक्के, कुछ पल , कुछ बातों में
यूँही गुजर जाती थी.....

ये हवा, ये मौसम ,ये नज़ारे कुछ अलग अंदाज बयां करते है
कुछ छींटे बौछारोंकी , कुछ बुँदे सावन की ,
कभी मासूम हुवा करती थी।

दुखों को पीछे छोड़ने की जद्दो जिहाद में
खुशियोंकी तलाश में.ज़िन्दगि मौताज हो गई

नजाने कहांसे आई ये बेरुखी ? मुझमे मुझको पता नहीं 

मोरपंखी स्वप्न तिचे , पुन्हा एकवार

 मोठ्या धीराची होती ती एक नाजूक परी  नियतीने तिला भरडले घालून जात्यापरी  शोधीत होती , भरकटलेल्या वादळात  मिळेल का मला एक हळवे बेट  प्रश्नांच...